महिलाओं को अब बर्दाश्त नहीं पाखंड
नवंबर के आखिरी शनिवार को पैरिस की सड़कों पर हजारों की तादाद में महिलाएं उतर आईं। उनमें हर उम्र और पेशे से जुड़ी महिलाएं थीं। आयोजकों का दावा है कि उनकी संख्या 50 हजार से ज्यादा थी और उनके साथ इस...
View Articleतश्तरी में नहीं मिलता गणतंत्र
वह 70 साल पहले का जमाना था। 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदुस्तान को एक ‘संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य’ बनाने का निर्णय कर लिया था। इसकी घोषणा के लिए अगले साल की 26 जनवरी की तारीख मुकर्रर की गई थी।...
View Articleकिसानों ने ही शुरू की थी दीवाली
केसेंड्रा स्टिवार्ट, टायरिन पोलॉक, क्रिस्टिना यंग और पारुल अग्रवाल का एक संयुक्त शोध पत्र है- ‘धन के गैर वित्तीय उपयोग’ (नॉन मॉनिटरी यूजेस ऑफ मनी)। उन्होंने इस अध्ययन का आधार दीवाली और कैथलिक चर्चों...
View Articleअमेरिका: सत्ताशीर्ष को सजा दिलाने वाला लोकतंत्र
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर न्यू यॉर्क स्टेट सुप्रीम कोर्ट की जज सेलियाना स्कारपुला ने बीस लाख डॉलर का जुर्माना लगाया है। यह फैसला पिछले गुरुवार को सुनाया गया। अमेरिका में फेडरल न्यायपालिका...
View Articleहम भी देख सकते हैं सौ वसंत
बबली को जैसे ही छींक आई, दादी बोल पड़ीं, ‘सत्तन जी। सौ साल जियो।’ बबली ने नाक मसलते हुए कहा, ‘दादी, यहां तो सत्तर पार करना ही मुश्किल है, सौ साल कैसे जियेंगे?’ भारत में पुरुषों की औसत आयु 68.56 वर्ष और...
View Articleनागरिकता कानून: सत्ता को सुननी ही होगी जनता की बात
नागरिकता संशोधन कानून 2019 (सीएए) पर देश भर में जो चर्चा चल रही है, उसमें एक सवाल बार-बार पूछा जा रहा है, ‘जब तुम्हारा इस कानून से कोई लेना-देना नहीं है, तो तुम इसे लेकर सड़कों पर क्यों उतर रहे हो?’ यह...
View Articleशिक्षा में सुधार के लिए चाहिए लंबी छलांग
कोई दो साल पहले एसोचैम ने एक सर्वे कराया था, जिसमें पाया गया कि निम्न और मध्यम आय वाले 70 प्रतिशत भारतीय परिवार अपनी कमाई का 30-40 फीसदी तक हिस्सा बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते हैं। चार सदस्यों वाले,...
View Articleप्रेम निवेदन की भारतीय परंपरा
आखिर वैलंटाइन डे आ पहुंचा। यह भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है। यह ल्यूपरसेलिया नामक एक प्राचीन रोमन त्योहार है, जो 14 वीं शताब्दी तक आते-आते प्रेम की अभिव्यक्ति के दिन में बदल गया। यहां वह अब इतना...
View Articleइतिहास को लोकप्रिय डीएन झा ने बनाया
प्रो. डीएन झा कोई एक दशक पहले एनबीटी महिलाओं से संबंधित लेखों की एक श्रृंखला चला रहा था। हमारी संस्कृति में उन्हें कैसा स्थान मिला, मनु संहिता ने क्या लिखा, वे वंश का उत्तराधिकारी क्यों नहीं बनीं,...
View Articleअलविदा, हमारी सजग सनेही पाठिका
वह 2003 या 2004 का साल रहा होगा। मैं नवभारत टाइम्स का संपादकीय पन्ना देखता था। उन दिनों भी उस पर आज की ही तरह रोजाना धर्म और अध्यात्म पर एक छोटा लेख छपा करता था। तब उसका नाम ‘स्पीकिंग ट्री’ नहीं, बल्कि...
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